Sunday, September 28, 2008

जरूरत है भक्ति आन्दोलन जैसे झंझावात की - हिन्दुस्तान,28सितम्बर 2008


विभूति नारायण राय अपने विचारों से वक्त -वक्त पर सामाजिक चिंतन को झकझोरने वाले पुलिस अफसर और साहित्यकार हैं.उन्हें हाल ही में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा का कुलपति बनाया गया है. उनका कुलपति बनाया जाना उन लोगों को चौंकाता है जो विभूति के बारे में कम जानतें हैं . उन्हें आप एक साथ कई भूमिकाओं में देख सकतें हैं . वे खाकी वर्दी में राज्य के प्रतिनिधि हैं तो कभी दंगे की पडताल करते सामाजिक शोधकर्ता....और साहित्यकार के रूप में राज्य व समाज के क्रिटिक . उनका उपन्यास 'शहर में कर्फ्यू ' काफी चर्चित रहा है. कुलपति बनाये जाने के बाद नासिरुद्दीन ने उनसे कई मुद्दों पर बात की, जो कुछ इस रूप में आपके सामने है.


आमतौर पर संस्थागत साहित्य की श्रेणी में खालिस साहित्यकारों या फिर शिक्षकों के अलावा जल्दी किसी और को शामिल नहीं किया जाता है . ऐसे में आप महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति के अपने चुनाव को किस रूप में देखतें हैं ?
यह सही है कि वर्षों तक हिन्दी समाज की यह मान्यता रही कि सिर्फ अध्यापक और पत्रकार ही हिन्दी के लेखक हो सकतें हैं . मैं भारतीय पुलिस सेवा में आने के पहले भी लिखता पढता था और सेवा में आने के बाद भी मेरा लेखन जारी रहा पर सेवा में आने के बाद कई बार बडे मजेदार अनुभव हुये . बहुत सारे सम्पादकों/ आलोचकों ने मेरे लेखन को एक वर्जित प्रदेश में अनधिकृत प्रवेश के रूप में लिया. अक्सर यह सलाह मिली कि भइये अपना काम धाम सम्भालो, लिखना पढना तुम्हारे वश का नहीं. पर पिछले कुछ दशकों में हिन्दी का परिदृश्य तेजी से बदला है. बडी संख्या में डाक्टर, इंजीनियर, किरानी, फौजी, वकील या चार्टेड एकाउंटेंट जैसे पेशों के लोग लेखन में सक्रिय हुयें हैं. ये लोग अपनी रचनाशीलता और गुणवत्ता के बल पर साहित्य की दुनियां में जगह बना रहें हैं. अलग अलग पोशों से आये ये लोग अपने अपने क्षेत्रों के अनुभव और वहां की भाषा साथ लेकर आ रहें हैं. निश्चित रूप से वे हिन्दी को समृद्ध और बहुआयामी बना रहें हैं.

महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय पिछले दिनों काफी विवाद में भी रहा. आपने वहाँ के लिये कुछ खास सोचा है ?

मेरा अभी तक महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय से भौतिक साक्षात्कार नहीं हुआ है.हिन्दी समाज के किसी दूसरे उत्सुक सदस्य की भाँति मैं भी इस विश्वविद्यालय के साथ जुडे विवादों के बारे में सुनता रहा हूँ . मैं बिना किसी पूर्वाग्रह के क्लीन स्लेट की तरह वहाँ जा रहा हूं. मुझे आशा है हिन्दी समाज मेरी मदद करेगा.

साहित्य समाज का आईना माना जाता है. पुलिस की सामाजिक छवि से उलट साहित्य का दायरा है. ऐसे में आप इन दोनों के बीच कैसे सामंजस्य बना पातें हैं ?

पुलिस सेवा किसी भी अन्य नौकरशाही की तरह रचनात्मकता विरोधी है .मैंने पिचाले तैंतीस वर्षों की सेवा के दौरान यह अनुभव किया कि यदि आप अपनी नौकरी के अतिरिक्त दिलचस्पी के दूसरे क्षेत्र नहीं रखेंगे तो धीरे धीरे आप जानवर में तबदील होतें जायेंगे. नौकरी में आने के बाद मैंने पढने लिखने का सिलसिला जारी रखा और इस तरह मनुष्य बने रहने का प्रयास करता रहा. जब भी कभी मुझे पुलिस अथवा प्रशासन की किसी ट्रेनिंग अकादमी में जाने का मौका मिलता है मैं अपने जूनियर सहकर्मियों को यही समझाने की कोशिश करता हूं कि वे सरकारी नौकरी के अलावा साहित्य, संगीत, फोटोग्राफी, पेंटिंग, थियेटर, ट्रैकिंग- रचनात्मकता के किसी न किसी क्षेत्र से अपने को जोडें रहें अन्यथा उन्हें पता भी नहीं चलेगा और वे धीरे धीरे संवेदनशून्य होतें जायेगे. अपने तैंतीस वर्षों की पुलिस सेवा से एक लेखक के रूप में मुझे कोई शिकायत नहीं है. अपनी सेवा के दौरान मुझे जो अनुभव मिले वे दूसरी किसी सेवा मे रहते हुये नहीं मिल सकते थे. मेरे उपन्यासों में बिखरी तमाम घटनाएं और पात्र इन्हीं अनुभवों की उपज है . मेरी दिलचस्पी भारतीय समाज के साम्प्रदायिक पक्ष को समझने में रही है . पुलिस के ऊँचे ओहदों पर रहने के कारण अल्पसंख्यकों और राज्य के रिश्तों को समझने में मुझे मदद मिली है. मेरी मार्कसवादी समझ और साहित्य से रिश्ते ने मुझे उन क्षणों में भी जब मैं किसी भीषण दंगे की चपेट में आये शहर में खाकी कपडा पहने सडकों पर खडा होता था, मुझे हिन्दू होने से रोका.

हिन्दी को लेकर साम्प्रदायिक राजनीति भी होती है और क्षेत्रीय भी, वैसे में हिन्दी का बाकी भाषाओं, समुदायों और क्षेत्र से सहज रिश्ता कैसे बन सकता है ?

हिन्दी , अपने विविध रूपों में , देश में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है .सम्पर्क भाषा और प्रकारांतर से राष्ट्र भाषा का उसका दावा भी सबसे मजबूत है . दुर्भाग्य से हिन्दी भाषियों ने बडप्पन का परिचय नहीं दिया है और इसी से हिन्दी को देश के विभिन्न हिस्सों में समय समय पर विरोध का सामना करना पडा है . मैं सिर्फ एक उदाहरण दूँगा . देस्ह की भाषायी समस्या को सुलझाने के लिये त्रिभाषा फार्मूला लागू किया गया था . एक भी हिन्दी भाषी प्रदेश में हिन्दी और अँग्रेजी के अतिरिक्त किसी अन्य भारतीय भाषा को इस फार्मूले के तहत अपने बच्चों के लिये अनिवार्य नहीं किया गया . हम चाहतें हैं कि दूसरे भाषा भाषी हिन्दी पढें किंतु स्वयं कोई अन्य भारतीय भाषा सीखने के लिये तैयार नहीं हैं . यही कारण है कि अन्य अहिन्दी भाषी हिन्दी को लेकर बहुत उत्साहित नहीं रहते . हमें बडप्पन का परिचय देना होगा और दूसरी भाषाओं के प्रति आदर और उन्हें सीखने की ललक दिखानी होगी . पिछले कुछ दिनों में हिन्दी का प्रयोग एक खास तरह की साम्प्रदायिक राजनीति के लिये भी हुआ है . विशेषकर समाज में हाशिये पर खडे वर्गों यथा दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को डराने के लिये भाषा का उपयोग बढा है . भाषा में बाहर खडे इन तबकों को भाषा के अन्दर लाना होगा .

आपने अपने पैतृक गाँव में एक पुस्तकालय की स्थापना की है. वहाँ कई तरह की सांस्कृतिक -साहित्यिक गतिविधियां लगातार हो रहीं हैं . पुस्तकालय ही क्यों ? इसका कोई फायदा दिख रहा है ?

श्री रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना सन 1993 में पढने की सँस्कृति विकसित करने के लिए की गयी थी ! पिछले डॅढ दशकों में यह संस्था देश के एक मह्त्वपूर्ण साँस्कृतिक केन्द्र के रुप में मान्यता प्राप्त कर चुकी हॆ ! दस ह्जार से अधिक पुस्तकों एवँ डेढ सौ से अधिक लघु पत्रिकाऑ के अँको क़ॆ संग्रह वाला यह पुस्तकालय देश के सबसे पिछडे इलाकों में से एक- (जोकहरा, आजमगढ, उत्तर प्रदेश) में स्थित हॆ ! अपनी सक्रिय उपस्थिति से इसने न सिर्फ आसपास के इलाके में सामान्य लोगों में पुस्तक पढने की सँस्कृति विकसित की हॆ बल्कि विशेष रुप से समाज के हाशिये पर उपस्थिति दर्ज कराने वाले तबकों- दलितों , महिलाओं और भूमिहीन परिवारों के बच्चों की पुस्तकों तक पहुँच सम्भव बनाई हॆ .मेरा मानना है कि हिन्दी पट्टी को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जहर से बचाने के लिये एक बडे नवजागरण आन्दोलन की जरूरत है. यह आन्दोलन भूमि सम्बन्धों , वर्ण व्यवस्था तथा लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों को केन्द्र में रखकर ही हो सकता है . मेरा मानना है कि हिन्दी समाज में भक्ति आन्दोलन जैसे बडे झंझावात की जरूरत है . भक्ति आन्दोलन ने जिस तरह वर्ण व्यवस्था की चूलें हिलायीं , कर्म काण्डी पाखण्डों का मजाक उडाया और संस्कृत के बरक्स लोक भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलायी वैसा हिन्दी समाज में पहले कभी नहीं हुआ था .आज भी आवश्यकता इसी बात की है कि एक मजबूत नवजागरण का प्रयास हो जो गलीज वर्ण व्यवस्था के ढहते हुये खण्डहर को पूरी तरह से जमींदोज़ कर दे इसके साथ ही इस नवजागरण को लैंगिक असमानताओं के विरुद्ध भी खडा होना पडेगा और भू सम्बन्धों में बुनियादी परिवर्तन लाने का प्रयास भी करना होगा . मैं समझता हूं कि पुस्तकालयों को केन्द्र में रखकर ये सारे प्रयास किये जा सकतें हैं .

आपने पुलिस सेवा में रहते हुये शहर में कर्फ्यू जैसा उपन्यास लिखा, कई लेख लिखे जो पुलिस और राजनीति के साम्प्रदायिक चरित्र बयान करतें हैं. क्या आपके लेखन ने कभी आपको परेशानी में डाला है ? या आपके सेवा के लोगों ने इसे किस रूप में लिया है ?

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय समाज में साम्प्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता बडी तेजी के साथ बढी है . इसका असर पुलिस और दूसरी उन संस्थाओं पर भी पडा है जिनका मुख्य काम कानून व्यवस्था लागू करना है .लगभग हर साम्प्रदायिक दंगों में अल्पसंख्यकों की तरफ से पुलिस पर यह आरोप लगतें रहें हैं कि उसने दंगों के दौरान वह सब नहीं किया जो उसे करना चाहिये था या वह सब किया जो उसे नहीं करना चहिये था . मैं भी काफी हद तक इस बात से सहमत हूं और अलग अलग मौकों पर मैंने पुलिस में बढती साम्प्रदायिकता पर सवाल भी उठायें हैं . मेरे विचार इस मामले में बहुत स्पष्ट रहें हैं और मैं इन विषयों पर खुलकर लिखता बोलता रहा हूं . स्वाभाविक है कि मेरे बहुत से पुलिस सहकर्मियों और सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को ये विचार पसन्द नहीं आये और कई बार मुझे कुछ दिक्कतों का भी सामना करना पडा है . मैं कभी इस बात पर बहुत चिंतित नहीं रहा और मुझे नहीं लगता कि मुझे कोई बहुत बडी कीमत चुकानी पडी.

Friday, September 26, 2008

IPS officer chosen V-C of Hindi university- MAIL TODAY,14 september,2008

By Kavita Chowdhury in New Delhi

IT’S A first for a central university. IPS officer Vibhuti Narain Rai has been appointed the vicechancellor ( V- C) of the Mahatma Gandhi Antarashtriya Hindi University at Wardha in Maharashtra.

The 1975 batch IPS officer, currently an additional director general in Uttar Pradesh Police, is also a well known Hindi writer and literateur.

Though the appointment came as a surprise to most, the need to get the only Hindi university in the country back on track made Rai an apt choice. Excited about his new role, Rai said, “ A V- C need not be an academician.” Pleased at getting “ a job of my choice” Rai said he hoped to take charge at Wardha by October 2. Rai is passionate about literature and described his present role as to his liking.

A three- member search committee, comprising professor Bipan Chandra, Sudeep Banerjee and U. R. Ananthamurthy, selected Rai as the V- C after which President Pratibha Patil gave her nod on September 1.

The ministry of home affairs and the UP administration are still to give him the required clearance.

Although the Hindi university came into existence a decade ago in 1997, it had hardly taken off with little work being done on the ground. In contrast the Urdu University at Hyderabad, launched around the same time, has established itself as a leading institution.

The Hindi university’s first vicechancellor Ashok Bajpai functioned from Delhi. During his tenure, very little infrastructure and buildings were set up. His successor, G. Gopinathan, managed to get things started but his tenure was mired in controversy with the executive council not supporting him.

Speaking to MAIL TODAY from Lucknow, Rai said his 33- year experience in the police force would help him. “ The job demands not just a literary background but the qualities of an able administrator.

The last 10 years of the university have been almost lost. I will try to give to it the status it was meant to have as a leading Hindi institution,” Rai added.

The university has a school of non- violence and even has a course in Buddhist studies. The university has plans of starting a management school.

Wednesday, September 3, 2008

Printed from-The Times of India -Breaking news-Vibhuti Narain Rai is Hindi University VC


4 Sep 2008, 0312 hrs IST,TNN
WARDHA:
President Pratibha Patil has given her nod to the appointment of Vibhuti Narain Rai, additional director general of police, Uttar Pradesh, and a noted writer as the new vice chancellor of Wardha-based Mahatma Gandhi International Hindi University.
She approved the appointment before beginning her tour of her home-district Amravati which is adjacent to Wardha.
She picked up Rai from among the four names suggested by a search committee on July 29. The picking up of an IPS officer with known administrative capability as well as substantial contribution to literature reflects the desire of government to finally end the controversies that have been plaguing the university.
The University's first vice-chancellor Ashok Bajpai was also an IAS officer from MP cadre and a well-known poet.
Rai (57), is an IPS officer of 1975 batch, and is known for his literary contributions as well.
His notable books include 'Shahar Mein Curfew' , Combating Communal Conflict, Communal Conflicts: Perception of Police Neutrality During Hindu-Muslim Riots in India, 'Kissa Loktantra ' , and 'Tabadala' .
Rai told TOI he may take over his new responsibility on October 2, the birth anniversary of Mahatma Gandhi. On the controversies in the university he merely said he would like time to understand the issues.
"It is too early to comment as the HRD ministry is yet to give me a formal letter of appointment," he said.
The chancellor of the Mahatma Gandhi International Hindi University and legendary Hindi critic, Prof Namwar Singh has expressed his support to the new vice chancellor Vibhuti Narain Rai.
Talking to TOI from Delhi he said, "I know Vibhuti personally and am assured of his capability. He will lead the university to develop and attain the same status as the Urdu university at Hyderabad which was established at the same time. I hope he will coordinate well with the executive council to remove the mess in the university."
The executive council members have been boycotting the university for the last one year. The vice-president of Kendriya Hindi Sansthan, Ramsharan Joshi said, "I think he will give a boost to research work in humanities through Hindi medium, shape the academic activities that got derailed during the tenure of his predecessors. Only he must stay at Wardha, which is essential for proper functioning of the institution."