tag:blogger.com,1999:blog-3294502058800125720.post4342948348389406378..comments2024-03-06T13:20:13.719-08:00Comments on Vibhuti Narain Rai: जरूरत है भक्ति आन्दोलन जैसे झंझावात की - हिन्दुस्तान,28सितम्बर 2008padmahttp://www.blogger.com/profile/16929136738853998318noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3294502058800125720.post-43982794283368230942008-10-04T02:10:00.000-07:002008-10-04T02:10:00.000-07:00मेरी समझ से पुलिस सेवा में संवेदना के ह्रास का सबस...मेरी समझ से पुलिस सेवा में संवेदना के ह्रास का सबसे बडा कारण है उनकी अनियमित डयूटी। कभी कभी तो यह डयूटी 24 घण्टे की रहती है। ऐसे में कोई व्यक्ति कैसे सामान्य रह सकता है। सरकार को इस विषय में भी सोचना चाहिए।<BR/>इस साक्षात्कार को हिन्दुस्तान के बाद यहाँ भी पढना अच्छा लगा। शुक्रिया।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3294502058800125720.post-88204564269038586982008-10-02T21:36:00.000-07:002008-10-02T21:36:00.000-07:00किसी भाषा को उसके वाचिक समाज से अलग करके नहीं देखा...किसी भाषा को उसके वाचिक समाज से अलग करके नहीं देखा जा सकता. जाहिर है यह शर्त हिन्दी पर भी यथावत लागू होती है, जिसके समाज की छवि प्रायः आत्ममुग्धता, साम्प्रदायिक सोच, स्वार्थपरता और सत्तालोलुपता जैसे गुणों से बाहर नहीं निकल पाती है. इधर हिन्दी के विद्वान वास्तविक विद्वान बनने से पहले ही हिन्दी की मठाधीशी पर अधिक ऊर्जा खर्च करने लगते हैं, जिससे समकालीन वैश्विक ज्ञानानुशासनों के सापेक्ष मौलिक चिंतन की हिन्दी में निहित रिक्तता को सतह पर महसूस किया जा सकता है. यदि कहीं हिन्दी का आंशिक विरोध होता है, तो वस्तुत: यह विरोध हिन्दी का नहीं बल्कि हिन्दीपन का होता है. जिसको हिन्दी के कर्णधारों को समझना चाहिए, जिससे हिन्दी को उस भौगोलिक यूटोपिया से बाहर भी सम्मान मिल सके अन्यथा हिन्दी सिर्फ बाजार की भाषा बनकर रह जायेगी और बाजार की प्रतिबद्धता भाषा के साथ नहीं होती, बल्कि भाषाजनित पूँजी के साथ है.अरिमर्दन कुमार त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/08130867631649850790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3294502058800125720.post-32101874373901415572008-09-30T02:55:00.000-07:002008-09-30T02:55:00.000-07:00मैं राय साहब की इस बात से पूरी तरह से इत्तेफाक र...मैं राय साहब की इस बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखता हूँ की सरकारी नौकरी -ख़ास तौर पर पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं में निरंतर संवेदना का ह्रास हो रहा है -ऐसे परिदृश्य में इस बात में दम है कि इन सेवाओं के लोगों को साहित्य और कला के विभिन्न क्षेत्रों की और उन्मुख किया जाय ! पर यह कहना आसान है और चरितार्थ होना मुश्किल -राय साहब एक अपवाद ही हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com